क्या है नियोग विधि? जिससे पैदा हुए थे पांडव, जानें इस विधि से जुड़े महाभारत कालीन नियम
महाभारत में नियोग को एक धार्मिक, नैतिक और सामाजिक जरूरतों के कारण अपनाया गया.

Mahabharat Katha : महाभारत काल में नियोग प्रथा में पराए पुरुषों से संतान पैदा करना उचित माना जाता था. केवल पांडवों ही नहीं बल्कि कई स्त्रियों ने नियोग के लिए ऐसी संतानें पैदा कीं, जो नामी बनीं महाभारत काल में नियोग प्रथा से स्त्रियां किसी अन्य पुरुष से बच्चा पैदा कर सकती थीं. पांडवों से लेकर धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर तक नियोग से पैदा हुए थे. क्या आपको मालूम है उस काल में और कौन सी स्त्रियां थीं, जिन्होंने ये काम करते हुए अन्य पुरुषों के जरिए बच्चे पैदा किए.
नियोग का मतलब होता है पति के मृत हो जाने या संतान पैदा करने में असमर्थ होने की स्थिति में किसी योग्य पुरुष से संतान प्राप्त करना. ये व्यवस्था विशेष रूप से कुल परंपरा को बनाए रखने और वंश वृद्धि के लिए अपनाई जाती थी. आइए हम आपको उन स्त्रियों के बारे में बताते हैं और उनकी नियोग से पैदा हुई संतानों के बारे में भी.
महाभारत में नियोग को एक धार्मिक, नैतिक और सामाजिक जरूरतों के कारण अपनाया गया. यह केवल वंश रक्षा और कुल परंपरा को बनाए रखने का एक उपाय था. यह प्रथा महिलाओं की सहमति से होती थी. इसमें संतान का अधिकार महिला के पति या कुल को ही माना जाता था, न कि उस ऋषि या पुरुष का, जिससे संतान पैदा हुई.
जब पांडवों की पड़दादी सत्यवती का ऋषि पराशर से हुआ नियोग
महाभारत में रानी सत्यवती का नाम हर कोई जानता है. वह मछुआरे की बेटी थीं. राजा शांतनु उनकी सुंदरता पर रीझ गए. हालांकि जब उन्होंने सत्यवती से शादी करना चाहा तो उनके पिता ने शर्त ले ली की सत्यवती से पैदा संतान ही राजगद्दी पर बैठेगी. जिससे शांतनु के पुत्र भीष्म को प्रतिज्ञा करनी पड़ी कि वह आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे. शादी करेंगे ही नहीं.
हालांकि तब राजा शांतुन को मालूम भी नहीं था कि सत्यवती ने युवावस्था में महान ऋषि पराशर से संतान पैदा की है. ये संतान नियोग से हुई. ऋषि पराशर तब सत्यवती पर आसक्त हो गए. उन्होंने उनके जरिए संतान पैदा करने की इच्छा जाहिर की. तब नियोग के जरिए उनसे एक पुत्र पैदा हुआ. जिसका नाम वेदव्यास था. बाद में वह महाभारत के रचयिता बने. एक महान ऋषि के रूप में प्रसिद्ध हुए. यही नहीं इन्हीं महर्षि व्यास को कुरु वंश को चलाने के लिए नियोग से संतान प्राप्ति के लिए बुलाया गया.
अंबिका और अंबालिका ने महर्षि व्यास से नियोग कर संतान पैदा की
सत्यवती के दो पुत्र थे, चित्रांगद और विचित्रवीर्य. दोनों की मृत्यु के बाद हस्तिनापुर के सिंहासन पर उत्तराधिकारी का संकट उत्पन्न हो गया. तब सत्यवती ने अपने पुत्र वेदव्यास यानि ऋषि व्यास को बुलवाया. उन्हें नियोग के जरिए अपनी बहुओं से संतान पैदा करने के लिए कहा.
अंबिका ने व्यास के पास आने पर आंखें बंद कर लीं तो उन्हें धृतराष्ट्र नामक पुत्र उत्पन्न हुआ जो जन्म से अंधे थे. अंबालिका तो व्यास के पास आने पर डर से पीली पड़ गईं, जिससे पांडु का जन्म हुआ जो शारीरिक रूप से दुर्बल थे. इन दोनों की एक दासी ने भी व्यास से नियोग किया, जिससे विदुर का जन्म हुआ, जो बहुत बुद्धिमान और नीति-निपुण थे.
जब पांडु की पत्नी ने माद्री ने अश्विनीकुमार को बुलाया
पांडु को ऋषि किंदम द्वारा दिए गए शाप के कारण वह अपनी पत्नियों के साथ सहवास नहीं कर सकते थे. तब उन्होंने संतान उत्पत्ति के लिए अपनी दोनों पत्नियों कुंती और माद्री को नियोग की अनुमति दी. माद्री ने अश्विनीकुमारों से नियोग किया. उनसे नकुल और सहदेव नामक जुड़वां पुत्रों का जन्म हुआ. नकुल और सहदेव पांडवों में सबसे छोटे थे.
कुंती का दो बार नियोग
कुंती जब कुंवारी थीं. तभी ऋषि दुर्वासा से मिले वरदान के बाद उन्होंने सूर्य का आह्वान किया. उस नियोग से उन्हें कर्ण पैदा हुआ, जिसे कुंवारी होने के कारण लोकलाज के डर से उन्होंने टोकरी में रखकर नदी में बहा दिया. बाद में शादी के बाद पांडु की आज्ञा से कुंती ने तीन और देवताओं को बुलाया, इससे उन्हें तीन पुत्र मिले. धर्मराज (यम) के संसर्ग से युधिष्ठिर, वायुदेव के साथ मिलन से भीम और इंद्रदेव के साथ नियोग से अर्जुन पैदा हुए.
वैसे महाभारत काल से पहले और इसके बाद भी नियोग प्रथा का उल्लेख अनेक धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में मिलता है. ये परंपरा वैदिक काल, रामायण काल और बाद के युगों तक सामाजिक वंश-वृद्धि के लिए मान्य व्यवस्था रही.
रामायण काल की महिलाएं
कौशल्या, कैकेयी, सुमित्रा को इंद्र से मिली संतानें
रामायण में श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के जन्म की कथा एक पुत्रकामेष्ठि यज्ञ से जुड़ी है, जिसमें अग्निदेव ने दिव्य खीर दी. कुछ पुराणों में वर्णन मिलता है कि ये संतानें वास्तव में नियोग स्वरूप देवताओं से प्राप्त हुईं.
राम – विष्णु के अंश से कौशल्या द्वारा पैदा किए गए
भरत – इन्द्र के अंश से कैकेयी द्वारा पैदा
लक्ष्मण – शेषनाग के जरिए सुमित्रा द्वारा पैदा
शत्रुघ्न – सुदर्शन चक्र के अंश से सुमित्रा के जरिए पैदा
अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसुइया ने कैसे नियोग किया
अनसूइया के प्रसंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने खुद उनके पुत्र दत्तात्रेय, चंद्र और दुर्वासा के रूप में जन्म लिया. यह कथा सांकेतिक है, लेकिन यह दिखाती है कि एक स्त्री एक से अधिक दिव्य आत्माओं से नियोग कर सकती थी.
शिवि की रानी
पद्मपुराण में उल्लेख मिलता है कि राजा शिवि की पत्नी को संतान नहीं हो रही थी.तब उन्होंने एक तपस्वी ब्राह्मण से नियोग द्वारा संतान पैदा की. जो बाद में महान राजा बना. यहां ये कहा जाता है कि ये नियोग रानी की सहमति के साथ राज्य की अनुमति से हुआ.
राजा द्रुमिल की रानी
पद्मपुराण में ये भी उल्लेख मिलता है. राजा द्रुमिल की पत्नी ने अपने पति की मृत्यु के बाद ऋषि कुश से नियोग के जरिए पुत्र पैदा किया. ये पुत्र बाद में एक प्रसिद्ध राजा बना.
बाणासुर की पुत्री ऊषा
स्कंद पुराण के अनुसार ऊषा ने भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से गुप्त रूप से संबंध बनाए और गर्भवती हुईं. यह नियोग नहीं था लेकिन उससे मिलता जुलता माना गया, जिससे वंश विस्तार हुआ.
संतान वैध मानी जाती थी
नियोग से पैदा संतान को वैध माना जाता था. बौद्ध और जैन ग्रंथों में भी ऐसे प्रसंग आते हैं, जहां महिलाओं ने संतान पाने के लिए नियोग को अपनाया.