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महाराणा प्रताप के वंशज अरविन्द सिंह मेवाड़ का निधन, जानते हैं, कैसे महाराणा प्रताप ने अकबर को युद्ध में तीन मौकों पर हराया?

Maharana Pratap and Akbar War: मुगल बादशाह अकबर का घमंड चूर-चूर करने वाले अत्यंत वीर योद्धा, मेवाड़ नरेश महाराणा प्रताप के वंशज अरविन्द सिंह मेवाड़ का रविवार को 80 की उम्र में निधन हो गया. वे लंबे समय से बीमार थे. उनके निधन पर पूरे मेवाड़ राजघराने में शोक है तो राजस्थान समेत देश के अन्य राजघराने एवं सामान्य लोग बरबस उनके पूर्वज महाराणा प्रताप को याद कर रहे हैं. उनकी बहादुरी के किस्से चर्चा-ए-आम हैं.

30 साल तक अकबर ने वीर योद्धा महाराणा प्रताप से जंग लड़ी लेकिन मुगल बादशाह खाली हाथ रहा. वो उन्हें छू भी नहीं पाया. मेवाड़ नरेश महाराणा प्रताप के वंशज अरविन्द सिंह मेवाड़ का रविवार को 80 की उम्र में निधन हो गया. इसी बहाने आइए जानते हैं, कैसे महाराणा प्रताप ने अकबर को युद्ध में तीन मौकों पर हराया? आखिर क्यों मुगल महाराणा प्रताप को पकड़ नहीं सके? आइए इस दुखद घड़ी में जानते हैं कि कैसे महाराणा प्रताप ने अकबर को युद्ध में तीन मौकों पर हराया? अकबर उनके निधन पर क्यों रोया? आखिर क्यों मुगल महाराणा प्रताप को पकड़ नहीं सके?

मुगलों के साथ लड़ा सबसे चर्चित युद्ध

इतिहास की किताबें भरी पड़ी हैं भारत के वीर सपूत मेवाड़ नरेश रहे महाराणा प्रताप के बहादुरी के किस्सों से. लेकिन सबसे चर्चित युद्ध, संघर्ष उनका मुगल शासक अकबर के साथ चला. लगभग 30 वर्ष की कोशिशों के बावजूद महाराणा प्रताप अकबर के हाथ नहीं लगे. यह उनका युद्ध कौशल ही था कि युद्ध में सामने आई अनेक विषम हालातों में भी वे झुके नहीं. अनेक तकलीफें सहीं.

जंगलों में भटकते रहे. फिर और बार-बार खुद को ताकतवर बनाते और अकबर की बहुत बड़ी सेना से भिड़ जाते. कुछ किस्सों के जरिए जानते हैं महाराणा प्रताप कितने बहादुर थे. यह वह कहानियां हैं जिन्हें सुनते हुए आज भी भारतीयों की बांहें फड़क उठती हैं.

Maharana Pratap Descendant Arvind Singh Mewar Dies

महाराणा प्रताप के वंशज अरविन्द सिंह मेवाड़.

दो कुंतल से ज्यादा हथियार-कवच लेकर चलते थे महाराणा प्रताप

7.5 फुट लंबे, 110 किलोग्राम वजन वाले महाराणा जब भी निकलते तो उनके शरीर पर दो कुंतल से ज्यादा के हथियार-कवच आदि होते. इतिहास की किताबों में उनके भाले का वजन 81 किलोग्राम कहा गया है तो छाती पर पहन जाने वाले कवच का वजन था 72 किलोग्राम. कल्पना करिए कि किसी कमजोर आदमी के ऊपर अगर महाराणा यूं ही गिर पड़े होंगे तो उसकी सांसें थम गई होंगी. उनके पास 104 किलोग्राम वजन की दो तलवारें भी हरदम होती थीं. कहा जाता है कि वे कभी किसी निहत्थे पर वार नहीं करते थे. दूसरी तलवार वे हमेशा दुश्मन की मदद के लिए लेकर चलते थे.

30 वर्ष चली जंग के बाद भी अकबर की सेना की पकड़ नहीं पाई

अकबर-महाराणा प्रताप की लड़ाई यूं तो लंबे समय तक चली. अकबर चाहता था कि उसकी सेना उसे महाराणा प्रताप जैसे बहादुर को पकड़कर सामने लाए. अपने लगभग 50 वर्ष के शासन में अकबर तीस वर्ष तक केवल महाराणा प्रताप के चक्कर में युद्ध लड़ता रहा. लेकिन तीन निर्णायक युद्ध साल 1577, 1578 और 1579 में हुए. हर युद्ध में अकबर की सेना को मुंह की खानी पड़ी. भरी-भरकम 50 हजार सैनिकों वाली फौज महाराणा का कुछ न बिगाड़ सकी.

जंगलों में भटके, घास की रोटियां खाईं लेकिन मातृभूमि के आन-बान-शान में आंच नहीं आने दी. महाराणा प्रताप ऐसे योद्धा थे कि उन्हें मातृभूमि से अतिशय प्रेम था. अकबर से युद्ध के दौरान अनेक मौके ऐसे आए जब वे तकलीफ में रहे. मेवाड़ नहीं लौट सकते थे. जंगलों में भटके. गुफाओं में सोये. घास की रोटियां तक खाईं लेकिन दुश्मन उन्हें छू न सके. कहते हैं कि अकबर के स्वप्न में भी महाराणा प्रताप आते थे और वह चौंककर उठ जाता था.

32 वर्ष की उम्र में बने थे मेवाड़ के शासक

नौ जून 1540 को जन्मे इस वीर योद्धा ने महज 32 वर्ष की उम्र में मेवाड़ की सत्ता संभाली थी. देखते ही देखते उनका यश बढ़ता गया और अकबर के निशाने पर आ गए. वे धर्म पारायण शासक थे. युद्धबंदी महिलाओं को वे पूरे सम्मान से वापस लौटा देते थे. उनकी सदाशयता पर अकबर भी रोया था, जब महाराणा प्रताप ने दुनिया छोड़ी थी. इसीलिए मेवाड़ समेत राजस्थान और देश के अन्य हिस्सों में आज फिर से उनकी चर्चा, बहादुरी की कहानियां सुनी-सुनाई जा रही हैं.

20 हजार बनाम 85 हजार

अकबर की सेना में 85 हजार सैनिक थे तथा महाराणा प्रताप की सेना में महज 20 हजार फिर भी मुगल सेना हल्दीघाटी युद्ध में खेत रही. इतिहास की किताबों में दर्ज है कि इस युद्ध में मेवाड़ के 1600 सैनिक शहीद हुए तो मुगल सेना के करीब 7800 मारे गए. कई सैकड़ा घायल हुए. इस युद्ध में महाराणा प्रताप खुद घायल हुए लेकिन मुगल सेना उन्हें पकड़ नहीं सकी.

चेतक और महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप जिस घोड़े पर सवारी करते थे उसे चेतक के नाम से जाना जाता है. चेतक भी खूब बहादुर था ठीक अपने स्वामी की तरह. हल्दीघाटी युद्ध में घायल होने के बाद जब चेतक महाराणा को लेकर चला तो उसके पीछे मुगल सैनिक भी भागे. सामने एक चौड़ा नाला आ गया, जिसकी चौड़ाई करीब 26 फुट थी, चेतक उसे लांघ गया लेकिन मुगल सेना का कोई भी घोड़ा उस नाले को नहीं लांघ सका. इस तरह चेतक की बहादुरी की वजह से महाराणा मुगल सेना की पकड़ में आने से बच गए.

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